नवरात्री : राणी कमलापती

इतिहास के पन्नों को पलटने से ज्ञात होता है कि 13वीं शताब्दी, नवाब काल २ से पूर्व तक गिन्नौरगढ़ किले(Ginaurgarh Fort) पर गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा तथा भोपाल(Bhopal) पर भी उन्हीं का शासन था। रानी कमलापति (Kamalapati)गोंड राजवंश की रानी और गोंड राजा निजाम शाह की पत्नी थीं। रानी की इच्छा अनुसार राजा ने भोपाल के तालाब तट पर एक महल का निर्माण करवाया, जो सन् 1702 में पूर्ण हुआ, जिसे आज भी ‘रानी कमलापति महल’ के नाम से जाना जाता है। इसके अवशेष छोटे और बड़े तालाब के पार्क में देखे जा सकते हैं। सन् 1989 से भारतीय पुरातत्त्व विभाग(Archaeological Survey of India) ने इस महल को अपने संरक्षण में ले लिया है, इसमें एक छोटी चित्र प्रदर्शनी भी है।

गोंड समुदाय(Gond community) का राजवंश गिन्नौरगढ़(Ginaurgarh Fort) से बाड़ी तक फैला हुआ था। उनका साम्राज्य गढ़ा कटंगा (मंडला) 52 गढ़ के आधिपत्य में रहा है। रायसेन में 1362 से 1419 तक राजा रायसिंह का 57 वर्ष तक कार्यकाल रहा। रायसेन किला इन्हीं के द्वारा बनवाया गया था। लगभग 14वीं ईसवी में जगदीशपुर (वर्तमान इस्लाम नगर) में गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा। इस महल को भी गोंड राजाओं के द्वारा बनवाया गया था। सन् 1715 में अंतिम गोंड राजा नरसिंह देवड़ा रहे। भोपाल में 476 से 533 ईसवी तक लगभग 60 वर्षों तक इनका शासन रहा। गोंड समाज के प्रथम धर्मगुरु पारी कुमार लिंगो बाबा ने पाँच देव के लिए बैरागढ़ का स्थान निश्चित किया। तभी से गोंड समाज के लोग बैरागढ़ से हजारों किलोमीटर की दूरी पर निवास करने के बावजूद बैरागढ़ में बड़ा देव की पूजा-अर्चना करने आते हैं। यह गोंड समाज का सबसे बड़ा देवस्थल है।

जिला रायसेन-बाड़ी के अंतिम शासक चैन सिंह 16वीं ईसवीं में रहे। इस सदी में सलकनपुर सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासनकाल में वहाँ की प्रजा बहुत खुशहाल और संपन्न थी। उनके यहाँ एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ। वह बचपन से ही कमल की तरह सुकोमल थी। उसकी सुंदरता को देखते हुए उसका नाम ‘कमलापति’ रखा गया। बचपन से ही वह बुद्धिमान और साहसी थी। शिक्षा, घुड़सवारी, मल्लयुद्ध, तीर-कमान चलाने में दक्ष थी। वह अनेक कलाओं में पारंगत हुईं और कुशल सेनापति बनी।
वह अपने पिता के सैन्यबल के साथ और अपने महिला साथी दल के साथ युद्ध में शत्रुओं से मोर्चा लेती थी। पड़ोसी राज्य अकसर खेत-खलिहान, धन-संपत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते थे। सलकनपुर राज्य की देख-रेख करने की पूरी जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी बेटी राजकुमारी कमलापति की थी। वे आक्रमणकारियों से युद्ध कर अपने राज्य की रक्षा करती रहीं।
सोलहवीं सदी में भोपाल से 35 किलोमीटर दूर 705 गाँवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया, जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सुराज सिंह शाह थे। इनके पुत्र निजामशाह थे। जो शूरवीर तथा रणकौशल में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ।

राजा निजाम शाह (Raja Nizam Shah)ने रानी कमलापति के लिए ईसवी 1700 में भोपाल में सात मंजिला महल का निर्माण करवाया, जो लखौरी ईंट और मिट्टी से बनवाया गया था। यह सात मंजिला महल अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध था। रानी कमलापति अपना वैवाहिक जीवन राजा निजामशाह के साथ आनंद में व्यतीत कर रही थीं। उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम नवल शाह रखा। कुल मिलाकर रानी का आरंभिक जीवन खुशहाल था।यह वह समय था, जब दिल्ली पर तुर्क मुसलमानों को सत्ता हासिल किए हुए लगभग 600 वर्ष हो गए थे, लेकिन दूर अंचलों में सैकड़ों राजपूत और जनजातीय समूह अपने वंश के राज्यों के या तो स्वामी थे अथवा सामंत थे। रानी कमलापति ऐसे ही हिंदू गोंड वंश की रानी थीं।

वर्ष 1720 में रानी कमलापति(Kamalapati) के पति गिन्नौरगढ़ के शासक निजामशाह की षड्यंत्र रचकर हत्या कर दी गई। तब रानी ने अपने पुत्र नवलशाह को गद्दी पर बैठाया और राजकाज देखने लगीं। यह वह कालखंड था, जब अफगान सरदार दोस्त मोहम्मद खाँ इस क्षेत्र में अपनी जड़ें जमाने की योजना बना रहा था। दोस्त मोहम्मद खाँ मुगलों की सेना में मराठों के दमन के लिए मालवा आया था, लेकिन वह मालवा से लौटकर दिल्ली नहीं गया, उसने सीतामऊ में नौकरी की। दोस्त मोहम्मद खाँ कूटनीतिक और क्रूर स्वभाव का व्यक्ति था। सीतामऊ के राजा को उसकी चालाकी का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया फिर वह मंगलगढ़ गया। मंगलगढ़ में उसने राजा का विश्वास जीता और रानी उसे अपना पुत्र मानने लगीं।

इसी बीच संदिग्ध परिस्थिति में मंगलगढ़ के राजा श्री आनंद सिंह सोलंकी और रानी दोनों की रहस्यमय परिस्थिति में मृत्यु हो गई। दोस्त मोहम्मद खाँ ने रियासत की सारी संपत्ति हस्तगत कर ली और उनकी बेटी कुँवर सरदार बाई का नाम बदलकर फतह बीबी रख दिया। यह घटना 1708 ई. के आसपास की है।1710 ई. में दोस्त मोहम्मद खाँ ने जगदीशपुर के देवड़ा ठाकुरों से दोस्ती की, उन्हें दावत पर बुलाया और उनकी परिवार सहित हत्या कर दी। जिस स्थान पर हत्या हुई, वहाँ अब भोपाल का हलाली डेम बना है। जगदीशपुर का नाम बदलकर इस्लामनगर रख दिया गया। इस विजय के बाद दोस्त मोहम्मद खाँ बड़ी भेंट लेकर मुगल दरबार पहुँचा और वहाँ उनसे बैरसिया को पट्टे पर ले लिया। उसके बाद उसने धोखे से मुगलों के विदिशा के किलेदार और रायसेन के किलेदार की हत्या की। फिर वह नजराना लेकर दिल्ली पहुँचा और बादशाह को यह समझाया कि वे दोनों किलेदार बगावत कर रहे थे।

इस घटना के बाद मुगलों ने दोस्त मोहम्मद खाँ को अपना प्रतिनिधि बनाया और उसे गोंडवाना तथा आसपास के क्षेत्र में राजस्व वसूली का अधिकार दे दिया। दोस्त मोहम्मद यही चाहता था, उसकी नजर भोपाल पर थी। उसने पहले बाड़ी पर हमला किया, वहाँ के राजा की हत्या कर दी। राजा के परिवार के अन्य सदस्यों को इस्लाम स्वीकार करने की शर्त पर ही जीवित छोड़ा। बाड़ी के बाद दोस्त मोहम्मद खाँ ने सलकनपुर पर हमला किया, सलकनपुर मंदिर को तोड़ा और गिन्नौरगढ़ पर घेरा डाला। यह घेरा लगभग सात दिन तक रहा।

जब दोस्त मोहम्मद खाँ(Mohammad Khan) ने बाड़ी पर हमला किया, तब इसकी सूचना रानी कमलापति को मिल गई थी। रानी को यह आशंका थी कि बाड़ी के बाद गिन्नौरगढ़ पर हमला हो सकता है, इसीलिए वह भोपाल आ गईं। गिन्नौरगढ़ हमले के बाद दोस्त मोहम्मद खाँ भोपाल आया। उसने एक प्रकार से रानी को किले में नजरबंद कर दिया। इससे रानी का गिन्नौरगढ़ से संपर्क टूट गया। किले में रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए आने-जाने वाले सभी लोग दोस्त मोहम्मद खाँ के विश्वसनीय जन ही थे।
स्रोतों के अनुसार वर्ष 1723 में दोस्त मोहम्मद खाँ ने रानी से मिलने के लिए महल में प्रवेश किया। रानी ने संकट को भाँप लिया और धोखेबाज के हरम का हिस्सा बनने के स्थान पर भोपाल के छोटे तालाब में जलसमाधि लेने का विकल्प चुना। इसी क्षण ने रानी को भोपाल की स्मृतियों में अंकित कर दिया। रानी कमलापति ने विषम परिस्थिति को देखते हुए बड़े तालाब के बाँध का सँकरा रास्ताखुलवाया, जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा, जिसे आज ‘छोटा तालाब’ के रूप में जाना जाता है। इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन, दौलत, जेवरात, आभूषण आदि डालकर स्वयं इसमें जलसमाधि ले ली।
रानी के बलिदान के साथ सबकुछ खत्म हो गया था। दोस्त मोहम्मद खाँ को न रानी कमलापति मिली और न ही धन-दौलत। रानी ने अपने जीवित रहने तक भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। रानी की मृत्यु उपरांत किले में मारकाट हुई। दोस्त मोहम्मद खाँ ने बुर्ज पर जाकर नमाज पढ़ी और स्वयं को विजयी घोषित किया। दोस्त मोहम्मद खाँ के साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ और भोपाल में नवाबी शासन शुरू हुआ।

नारी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए रानी कमलापति ने जल समाधि लेकर इतिहास में अमिट स्थान बनाया है। उनका यह कदम उसी जौहर परंपरा का पालन था, जिसमें भारतीय नारी शक्ति ने अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया है। उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रानी कमलापति ने भी अपनी अस्मिता को विधर्मियों से बचा लिया।
गोंड रानी कमलापति आज भी प्रासंगिक हैं। भोपाल का हर हिस्सा उनकी कहानी सुनाता है। यहाँ के तालाबों के पानी में उनके बलिदान की गूंज सुनी जा सकती है। ऐसा लगता है, मानो वह स्वयं यहाँ की कलकल धारा हैं। गोंड रानी अब पानी बनकर भोपाल की रवानी में अविरल बहती हैं।

 

अभियंता दिनी इतिहासातील राष्ट्र व समाजजीवन उभारणीत भटकेविमुक्त जातींच्या अभियांत्रिकी योगदानाचे स्मरण

 

मंकी बात…

Social Media